इल्तुतमिश की उपलब्धि | iltutmish ki uplabdhi

आज हम इस लेख में मध्यकालीन भारत के इतिहास से दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश से Iltutmish Ki Uplabdhi के बारे में पढ़ेंगे। इसके अतिरिक्त हम उसके कठिनाइयां, एवं साम्राज्य विस्तार के बारे में भी जानेंगे । दिल्ली सल्तनत पर Ghulam Vansh/Slave Dynasty ने 1206 से 1290 तक शासन किया था ।

Iltutmish Ki Uplabdhi

इल्तुतमिश की उपलब्धि (Iltutmish Ki Uplabdhi)

शम्सुद्दीन इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम व दामाद था । 1240 ऐबक के अस्मिक मृत्यु के कारण वह अपने उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था । जिसके बाद लाहौर के तुर्क अमीरों ने कुतुबुद्दीन ऐबक का पुत्र आरामशाह को गद्दी पर बैठाया, किंतु दिल्ली के तुर्क सरदारों तथा नागरिकों के विरोध के फलस्वरूप कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम इल्तुतमिश, जो बदायूँ का गवर्नर था । उसे दिल्ली के सरदारों ने सुल्तान पद के लिए आमंत्रित किया । आरामशाह और इल्तुतमिश के बीच जज मैदान के पास युद्ध हुआ, किन्तु आरामशाह पराजित हो गया । अंततः 1211 ई. में दिल्ली की गद्दी पर बैठा एवं वह अपने राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानान्तरित कर लिया । इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। इल्तुतमिश को गुलामों का गुलाम भी कहा जाता है।

इल्तुतमिश के शुरुआती जीवन

इल्तुतमिश इल्बरी तुर्क जनजाति का था । इसका पिता इलम खान इन्हीं इल्बरी तुर्क जनजाति का सरदार था । बाल्यकाल में ही उसे एक गुलामो के व्यापारी के पास बेच दिया । उसे बुखरा लाया गया जहाँ जमालुद्दीन मुहम्मद चुस्तकबा नामक एक व्यापारी खरीद कर गजनी लाया गया । जहाँ घुरिद राजा मुइज्जुद्दीन मुहम्मद गोरी ने इल्तुतमिश तथा अन्य दासों को खरीदने के लिए 1000 स्वर्ण मुद्राओं की बोली लगाई, किन्तु जमालुद्दीन ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, तो गोरी ने इन दासों पर क्रय - विक्रय पर रोक लगा दिया । कुछ दिनों के बाद ऐबक की नजर इल्तुतमिश एवं तमगाज रूमी पर पड़ता है। इन दासों को खरीदने के लिए सेवक ने मोहम्मद गोरी से अनुमति मांगी ।किंतु दासो के ख़रीद-फ़रोख़्त बंद हो जाने के चलते दिल्ली लाने का आदेश दिया । दिल्ली में इल्तुतमिश एवं तमगाज रूमी को एक लाख जीतल मे खरीद लिया । ऐबक ने इल्तुतमिश को 'सर-ए-जहांदार' (अंगरक्षकों का प्रधान) पर नियुक्त किया गया । वह ऐबक की सेवा में वह तेजी से आगे बढ़ता गया और इल्तुतमिश ने 'अमीर-ए-शिकार' पद प्राप्त किया । अगे चलकर ऐबक ने अपनी बेटी का विवाह इल्तुतमिश के साथ कर दिया। इसके बाद इल्तुतमिश को बदायूँ का गवर्नर नियुक्त किया गया, जो उस समय एक महत्वपूर्ण पद था। ऐबक ने मुहम्मद गैरी के अनुशंसा पर इल्तुतमिश को दासता से मुक्त कर दिया, साथ ही उसे उमीरूल उमरा की उपाधि दी।

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इल्तुतमिश की कठिनाइयां

इल्तुतमिश को सुल्तान पद प्राप्त करने के बाद उसके समक्ष निम्नलिखित समस्याएं थी-

  • विद्रोही अमीरों, विशेषकर कुत्बी और मुइज्जी सरदारों का दमन 
  • अपने प्रतिद्वंदियो यल्दौज और कुबाचा का दमन 
  • चंगेज खाँ के नेतृत्व मे मंगोलो आक्रमण से सल्तनत की रक्षा
  • अलीमर्दान ने अपने आप को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया।
  • राजपूत शासक पुनः संगठित हो कर तुर्की शासन का विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे।

उसके 25 वर्षीय शासन काल में इन सभी समस्याओं का समाधान हुआ। इस काल को तीन चरणों में विभक्त किया जा सकता है। -

  • प्रथम चरण 1210 से 1220 तक

विद्रोही अमीरो का दमन

सर्वप्रथम उसने उन सामन्तों की शक्ति को कुचला जो गद्दी पर उसके अधिकार का विरोध कर रहे थे।इनमें ज्यादातर कुत्बी अर्थात कुतुबुद्दीन ऐबक के समय के सरदार और मुइज्जी अर्थात मुइज्जीद्दीन मोहम्मद गौरी समय के सरदार थे। इल्तुतमिश ने इन विद्रोहियों का दमन कर उसने सरदारों पर भरोसा ना करते हुए उसने 40 अपने करीबी गुलाम सरदारों का गुट बनाया, जिसे 'तुर्कान-ए-चिहालगानी' का नाम दिया गया ।

यल्दौज के साम्राज्य का पतन

मुहम्मद गौरी के गुलामो मे से एक ताजुद्दीन यल्दौज भी था । वह इल्तुत्मिश के क्षेत्र को अपना हिस्सा मनता था। उसने इल्तुत्मिश को अपमान जनक चिन्ह भेजा, जिससे लगता है कि इल्तुतमिश एक अधीनस्थ शासन है । इल्तुतमिश उसे समय टकराव नहीं चाहता था, इस कारण यल्दौज के इस उपहार को स्वीकार कर लेता है। कुछ समय के बाद ख्वारिज्म के शाह ने गजनी पर आक्रमण कर वहां के शासक यल्दौज को पराजित कर देता है । वह गजनी से भाग गया और लहौर पर आक्रमण करके कुबाचा को पराजित कर देता है, तथा उसने पंजाब पर भी कब्जा कर लेता है। जिससे इल्तुतमिश के साम्राज्य के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया । वह तुरंत उसके खिलाफ आक्रमण कर देता है और 1516 को तराइन के मैदान में यल्दौज को पराजित कर देता है। इस प्रकार वह दिल्ली सल्तनत के स्वतंत्रता को बनाये रखने मे सफल रहा ।

  • द्वितीय चरण 1221 से 1228 तक

मंगोल आक्रमण से सल्तनत की रक्षा

ख्वारज्मियन के शासक जलालुद्दीन मंगबर्नी का पिछा करते हुऐ चंगेज खाँ अपनी सेना को लेकर कर दिल्ली सल्तनत के सीमा तक आ पहुंचा । मगबर्नी ने इल्तुतमिश को शरण माँगा, किन्तु मंगोलो से सल्तनत के रक्षा के लिए उसे शरण नही दिया । जिससे चंगेज खान संतुष्ट हो गया और उसने दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण नहीं किया ।

कुबाचा के साम्राज्य का विलय

इल्तुतमिश का दूसरा प्रतिद्वंद्वी कुबाचा था । उसने यल्दौज को पराजित करने के बाद कुबाचा ने लाहौर पर पुनः अधिकार कर लिया । वह अपने क्षेत्र में लगातार विस्तार कर रहा था, जिससे इल्तुतमिश चिंतित होकर 1217 में कुबाचा के विरुद्ध आक्रमण किया कुबाचा पीछे हट गया, किन्तु इल्तुतमिश की सेना उसका पीछा करते मंसूर नामक स्थान पर हरा दिया । कुछ दिनों के लिए स्वंय को सिंधु घाटी से को दूर रखा । मंगोलो और ख्वारज्मियों के संघर्ष के कारण कुबाचा की शक्ति बिल्कुल कमजोर पड़ गई । इल्तुतमिश इसका लाभ उठाते हुए, दोबारा कुबाचा के क्षेत्र में आक्रमण किया । उसने लहौर पर कब्जा करने के बाद अपने पुत्र नसीरुद्दीन महमूद को मुल्तान भेजा एवं स्वयं उच्छ पर आक्रमण किया । लगातार घेरा बंदी के बाद को कुबाचा भक्कर कर भाग गया कुबाचा हार की स्थिति में पा कर शांति संधि पर बातचीत करने करने लिए आपने बेटे को भेजा । किन्तु संधि पर बात ना बने पर खुद को सिंधु नदी में डूबकर मर गया ।

इल्तुतमिश का बंगाल पर विजय

अली मर्दन खिलजी को एक ने अपना राजपाल नियुक्त किया, लेकिन ऐबक की मृत्यु के बाद अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर लिया । इसकी राजधानी लखनौती थी । अली मर्दान की मृत्यु के बाद गयासुद्दीन इवाजशाह का शासक बना । जिसे वर्तमान बिहार के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया । इल्तुतमिश उत्तर पश्चिम क्षेत्र से छुटकारा पाकर पूर्व की ओर ध्यान दिया और बंगाल पर आक्रमण कर दिया । इवाज ने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार कर ली, किंतु इवाज ने पुनः स्वतंत्र कर लिया । इस बार इल्तुतमिश का पुत्र नसीरुद्दीन महमूद को बंगाल पर आक्रमण करने का आदेश दिया । इसने इवाज को हराकर मार देता है और वहां का शासक बन जाता है । लेकिन कुछ समय के बाद नसीरुद्दीन की मृत्यु हो जाती है । इसका लाभ उठाकर मलिक बलखा खिलजी ने बंगाल का सत्ता हड़प लेता है। इस बार इल्तुतमिश स्वंय सेना के साथ आक्रमण कर बलखा खिलजी को पराजित कर मलिक जानी को गवर्नर बना देता है ।

  •  तृतीय चरण 1229 से 1236 तक

राजपूत शासको के विरुद्ध संघर्ष

राजपूत शासक पुनः संगठित हो कर तुर्की शासन का विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे। परंतु इल्तुतमिश ने इन राजाओं के विरुद्ध हमला करना प्रांरभ कर दिया । उसने 1226 ई. मे रणथंभौर पर आक्रमण कर गोविन्दराज को पराजित कर देता है। इसके बाद 1227 ई. मे परमरो की राजधानी मन्दौर पर कब्जा कर लेता है। 1231 ई. में ग्वालियर के राजा मंगलदेव को पराजित किया एवं कांलिजर को भी अपने अधिकार मे कर लिया । उसने मालवा के चंदेलो के विरुद्ध एक अभियान का नेतृत्व करके भिलसा एवं उज्जैन को अपने अधीन कर लेता है । उसने नागदा और सोलंकी की राजधानी अन्हिलवाड़ा पर भी आक्रमण किया लेकिन यहां पर पराजित होना पड़ा । 

दोआब पर अधिकार

इल्तुतमिश के शुरुआती कठिनाइयों का लाभ उठाते हुए, बनारस, कटेहार, बदायूं स्वतंत्र हो गया। इल्तुतमिश के समय ही अवध का पिर्थू विद्रोह हुआ । परंतु अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद इल्तुतमिश में इन सभी पर नियंत्रण कर लिया। उसने अवध पर भी अधिकार कर लिया।

इल्तुतमिश के कार्य एवं उपलब्धियां

  • इल्तुतमिश स्वंय को एक विजेता के रूप में प्रदर्शित किया । उसने अपने साम्राज्य को शक्ति और सुदृढ़ता प्रदान की तथा अपने साम्राज्य में भी विस्तार किया । इसके अतिरिक्त उसने अपने विरोधियों की शक्ति को कुचल डाला ।
  • दिल्ली सल्तनत के प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार किया इसके लिए सबसे पहले उसने 1229 में बगदाद के खलीफा से सुल्तान पद के लिए वैधानिक स्वीकृति प्राप्त की । बगदाद के खलीफा (अब्बासी खिलाफत के 11वें खलीफा) इल्तुतमिश को 'सुल्तान-ए-आजम' की उपाधि प्रदान किया तथा खिलअत मिलने के बाद 'नासिर-अमीर-उल-मोमिनीन' की उपाधि धारण की।
  •  इल्तुतमिश ने मुद्रा प्रणाली मे भी सुधार किया । इसमें सबसे पहले शुद्ध अरबी सिक्के जारी किए, चांदी का टांका जो लगभग 175 ग्रैंन के था एवं तांबे का जीतल चलवाया । इसके अलावा उसने दिल्ली में टकसाल स्थापित किए थे, इल्तुतमिश ने सिक्कों पर टकसाल के नाम अंकित करवाने की परंपरा को आरंभ किया । सिक्कों पर उसने ने अपना उल्लेख खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में करता है।
  • इक्ता प्रणाली इल्तुतमिश के द्वारा चलाया गया था। इक्ता का संबंध भूमि से होता था, उसने अपने शासनकाल में अपने क्षेत्र को छोटे भागों में बांट दिया गया था, जिन्हें इक्ता के नाम से जाना जाता था । इल्तुतमिश ने इस व्यवस्था से सामंतवादी प्रथा खत्म करके केन्द्रीय प्रशासन व्यवस्था को मजबूत बनाया ।
  • इल्तुतमिश ने कई इमारतें के निर्माण कार्य करवाए, जिसमें से कुतुबमीनार का निर्माण कार्य को पूर्ण करवाया। सुल्तानी गढ़ी मकबरा का निर्माण, बदायूं का जामा मस्जिद, आतरकिन का दरवाजा (नागौर) एवं दिल्ली में 'मदरसा-ए-मुइज्ज' नामक मदरसे की स्थापना किया था । इल्तुतमिश को भारत में गुंबद निर्माण का पिता कहा जाता है ।

इल्तुतमिश का जब बामियान अभियान पर निकल था, तभी उसके स्वास्थ्य रास्ते में खराब हो जाने के कारण दिल्ली लाया गया, परंतु 1236 ई. में मृत्यु हो जाती है।

FAQ :-

Q1. इल्तुतमिश ने कौन से सिक्के चलाए?
Ans-
इल्तुतमिश ने सबसे पहले शुद्ध अरबी सिक्के जारी किए, चांदी का टांका जो लगभग 175 ग्रैंन के था एवं तांबे का जीतल चलवाया ।

Q2.इल्तुतमिश के समय वजीर कौन था ?
Ans-
निज़ाम-उल-मुल्क जुनैदी, जिसने इल्तुतमिश के समय से वज़ीर (प्रधान मंत्री) का पद संभाला था।

Q3.इल्तुतमिश किसका गुलाम था ?
Ans-
इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन का गुलाम था, एवं इल्तुतमिश का गुलाम गयासुद्दीन बलबन था ।

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