कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियां | Kutubuddin Aibak Ki Uplabdhi
Hello, दोस्तों आज हम इस POST में आपके लिए मध्यकालीन भारत के इतिहास से Ghulam Vansh/Slave Dynasty का कुतुबुद्दीन के बारे में share करने जा रहा हूँ , तो इस व्यापक POST में, हम भारत के इतिहास में गुलाम वंश से kutubuddin aibak ki uplabdhi पर चर्चा करेगें ।
कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियां - kutubuddin aibak ki uplabdhi
कुतुबुद्दीन ऐबक भारत में तुर्क साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था। वह घुरिद सम्राट मुइज्जुद्दीन मोहम्मद गोरी का गुलाम था। इसके साथ-साथ तुर्क सेनापति और उत्तर भारत मे घुरिद प्रदेश के प्रभारी थे। 1206 ई. मोहम्मद गोरी की हत्या के बाद दिल्ली सल्तनत की स्थापना और गुलाम वंश की शुरुआत की जो 1206 ईस्वी से 1290 ईस्वी तक चला। जिसमें कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ईस्वी से 1210 ईस्वी तक शासन किया। इसने अपना राजधानी लाहौर को बनाया गया ।
कुतुबुद्दीन ऐबक के शुरूवाती जीवन
कुतुबुद्दीन ऐबक तुर्किस्तान के निवासी थे और इनके माता-पिता तुर्क थे। कुतुबुद्दीन ऐबक को बचपन में ही अपने माता-पिता से अलग कर दिया गया था। इसे फारस के निशापुर के दास बाजार ले जा कर बेच दिया गया । उस समय इस क्षेत्र मे दास व्यापार का प्रचलन था । दासों को शिक्षा और सैन्य प्रशिक्षण देखकर राजा के हाथ बेचा जाता था। ऐबक को एक काजी फखरुद्दीन अब्दुल अजीज कुफी ने खरीद लिया था। काजी की मौत के बाद काजी के बेटे ने एक व्यापरी के पास बेंच दिया। जिसने ऐबक को गजनी के घुरिद सुल्तान मोहम्मद गोरी को बेच दिया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी प्रतिभा, लगन, ईमानदारी और स्वामीभक्त के बल पर ऐबक ने गोरी का विश्वास प्राप्त कर लिया। मोहम्मद गोरी ने उन्हें शाही अस्तबल के अधिकारी (अमीर-ए-आख़ूर) के पद पर नियुक्त किया।
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मोहम्मद गोरी के सहायक के रूप में
कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गोरी के सहायक के रूप में कई क्षेत्रों पर सैन्य अभियान में हिस्सा लिया । 1192 ईस्वीं मे तराइन के द्वितीय युद्ध मे विजयी प्राप्त की । जिसके बाद चाहमान का प्रशासक नियुक्त किया गया । जाटवान नामक एक विद्रोहियों का दमन किया । 1194 में मुहम्मद गोरी ने गढ़वाल राजा जयचंद्र को चदांवर के युद्ध मे पराजित किया जिसमें ऐबक ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था । इसके बाद ऐबक ने मांउट आबू मे चालुक्य सेना को हराया । 1202 मे ऐबक ने चंदेल साम्राज्य के कालिंजर को घेर कर वहां के शासक परमर्दीदेव ने ऐबक की अधिनता स्वीकार कर ली । ऐबक ने खोखरो विद्रोह मे गोरी का साथ दिया । यह गोरी के साथ ऐबक का अंतिम अभियान था।
कुतुबुद्दीन ऐबक का राज्यारोहण
मुहम्मद गोरी की मृत्यु 1206 ई. में हो जाती है। गोरी का कोई पुत्र नहीं था लेकिन अपने दासो पर विश्वास करता था ।इसलिए उनके मृत्यु के बाद उनका साम्राज्य उनके गुलाम में विभाजित कर दिया गया । ताजुद्दीन यल्दौज गजनी का शासक बना , नासिरुद्दीन कुबाचा सिंध तथा मुल्तान का क्षेत्र मिला , महम्मद बिन बख्तियार खिलजी को बंगाल का क्षेत्र, तथा कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का सुल्तान बना ।
मुहम्मद गोरी के हत्या के बाद 24 जून 1206 ईस्वीं को ऐबक ने अपना राज्याभिषेक किया । लेकिन उसने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की । वह मलिक एव सिपहसालार की पदवी से ही संतुष्ठ रखा, ना ही अपने नाम के सिक्के चलाए और ना ही अपने नाम के खुतबा पढ़या । ऐबक ने खिलअत भी नही प्राप्त किया । कुछ समय बाद गोरी के भतीजे गयासुद्दीन महमूद जो गोर का शासक बना था । उसने ऐबक को सुल्तान स्वीकर कर लिया और 1208 मे दासता से मुक्ति मिल गई ।
कुतुबुद्दीन ऐबक की समस्या
ऐबक को सुल्तान बनने के बाद अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा । उस समय ऐबक के अधीन मे उत्तर - भारत के कई क्षेत्र थे। ऐबक के प्रतिद्वंदी यल्दौज , कुबाचा तथा बंगाल के खिलजी वंश अपना प्रभाव पढ़ा रहे थे । राजपूत राज्य स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयास कर रहे थे । मुइज्जी और कुतुबी अमीर ऐबक से नाखुश थे । ऐसी स्थिति मे साम्राज्य विस्तार के बदले विजित प्रदेशो को संगठित तथा सिमाओ का सुरक्षा करना महत्वपूर्ण समझा। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए ऐबक ने वैवाहिक संबंध स्थापित किये उसने यल्दौज के पुत्री से स्वयं विवाह किया , ऐबक ने अपने बहन को कुबाचा से विवाह किया ।
ताजुद्दीन यल्दौज से संबंध
मुहम्मद गोरी के गुलामो मे से कुतुबुद्दीन ऐबक के अतिरिक्त यल्दौज भी विशेष महत्त्व रखता था । इसने भी गयासुद्दीन महमूद से दासता से मुक्ति प्राप्त कर गजनी पर शासन करने लगा । जिससे यल्दौज का मनोबल भी बढ़ गया। वह पंजाब की ओर प्रस्तान किया और लाहौर पर आक्रमण कर दिया । ऐबक ने यल्दौज को पराजित कर गजनी पर कब्जा कर लिया। परन्तु गजनी के जनता और स्थानीय सरदारों के विरोध करने कारण गजनी छोड़ लाहौर लौटने का योजना किया । यल्दौज गजनी के क्षेत्र पर पुनः कब्जा कर लिया। ऐबक ने घबरा कर दर्रे से भाग गया । ऐबक ने गजनी पर 40 दिनों तक शासन किया । जिसके बाद यल्दौज दोबारा आक्रमण करने का साहस नही किया।
नासिरुद्दीन कुबाचा से संबंध
कुतुबुद्दीन ऐबक का दूसरा प्रतिद्वंदी कबाचा था। गोरी के मृत्यु के बाद स्वतंत्र शासक के भाँति शासन करने लगा ऐबक को उससे भी खतरा का महसूस हुआ। ऐबक ने कूटनीति चाल के मदद से कुबाचा से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाया । ऐबक ने अपने बहन की विवाह कुबाचा के साथ कर दिया। जिससे दोनों मे कटुता समाप्त हो गई और ऐबक ने कुबाचा को अपने अधीन कर ली ।
कुतुबुद्दीन ऐबक और अली मर्दांन -
मुहम्मद गोरी के समय ऐबक मध्य भारत मे तुर्की सत्ता का विस्तार कर रहा था । उसी समय बख्तियार खिलजी ने पूर्व में तुर्की सत्ता का विस्तार कर रहा था । उसने बिहार कब्जा करने के बाद बंगाल के सेन वंश के शासक लक्ष्मण सेन को पराजित कर दिया और उसकी राजधानी लखनौती पर अधिकार कर लिया । अली मर्दान ने बख्तियार खलजी की हत्या कर दी और बंगाल में एक स्वतंत्र सुलतान के समान शासन करने लगा परंतु, उसकी स्थिति सुदृढ़ नहीं थी। खिलजी सरदार उसका लगातार विरोध करते रहते थे। अली मर्दान ने ऐबक से सहायता माँगी । ऐबक को बंगाल पर नियंत्रण करने के लिए एक सुनहरा मौका मिला गया । ऐबक ने अवध के गवर्नर क़ैमाज रूमी को बंगाल भेजा । क़ैमाज रूमी ने खिलजी सरदारों को पराजित कर दिया । अली मर्दान और खिलजी सरदारों ने ऐबक की अधीनता स्वीकार कर लिया ।
राजपूतो के प्रतिनीति
कुतुबुद्दीन ऐबक आतंरिक परिस्थितियों से निपट कर राजपूतों की ओर ध्यान दिया ।गोरी की मृत्यु से उत्पन्न परिस्थितियों का फायदा उठा कर स्वतंत्र सत्ता स्थापति कर लिया और ऐबक को लगातार चुनौती दे रहे थे। अंतर्वेदी के राज्यों ने कर देना बंद कर दिया था। कालिंजर और ग्वालियर हाथ से निकल थे। बदायूँ और फर्रूखाबाद से तुर्कों को निकाल दिया गया था,लेकिन ऐबक ने बदायूँ पर अधिकार कर इल्तुतमिश को इक्ता सौंप दिया, जिन राजाओं ने कर देना बंद कर दिया था उनसे पुनः कर वसूला जाने लगा । परन्तु 1210 ईस्वी मे चौगान खेलते समय घोड़े से गिर कर उसकी मृत्यु हो गई जिसके कारण कालिंजर और ग्वालियर पर अधिकार नहीं कर सका ।
ऐबक का योगदान
कुतुबुद्दीन ऐबक ने छोटी सी अवधि के लिए सुल्तान बना । वह अपनी सेना मे गौरी, तुर्क, खिलजी, और हिन्दुस्तानी सैनिक रखते थे । वह अपनी दानशीलता के कारण लाख बख्श के नाम से जाना जाता था तथा कुरान के सुन्दर गायन के कारण इसे कुरान खाँ भी कहा जाता था ।इनके संरक्षण मे हसन निजामी ने ' ताजुल मासिर ' तथा फर्रुखमुद्दीर ने 'अदाब-अल-हर्ब' व अलशुजाता नामक ग्रन्थ का रचना किया। ऐबक ने दिल्ली मे 'कुव्वत-उल-इस्लाम' मस्जिद तथा अजमेर मे 'ढाई दिन का झोपड़ा' नामक मस्जिद का निर्माण करवाया था । ऐबक ने कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के याद मे दिल्ली मे कुतुबमीनार का निर्माण कार्य को आंरभ किया । परन्तु कुतुबमीनार का पूरा कार्य इल्तुतमिश ने किया था।ऐबक में साहस, वीरता और कूटनीतिज्ञता भरी हुई थी।
FAQ:-
प्रश्न 1:- कुतुबुद्दीन ऐबक ने किस मस्जिद का निर्माण करवाया था?
उत्तर:- ऐबक ने दिल्ली मे 'कुव्वत-उल-इस्लाम' मस्जिद तथा अजमेर मे 'ढाई दिन का झोपड़ा' नामक मस्जिद का निर्माण करवाया था ।
प्रश्न 2:- कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली में कुतुबमीनार का निर्माण किसके याद मे करवाया था?
उत्तर:-कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली में कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के याद में।
प्रश्न 3:- कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम कौन था?
उत्तर : - कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गोरी का गुलाम था।
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