Mansabdari Pratha | इसके विशेषताएँ गुण एवं दोष

आज हम इसमें मुगल प्रशासन से अकबर के Mansabdari Partha पढ़ेंगे । इसके साथ इसकी विशेषताएँ, संरचना, गुण एवं दोष को भी को जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े । यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, जो विभिन्न परिक्षाओं मे पूछे जाते है ।

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Mansabdari Pratha | मनसबदारी प्रथा क्या है।

अकबर की केन्द्रीय प्रशासन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता अकबर की मनसबदारी प्रथा (mansabdari system) थी, जिसे अकबर ने विकसित किया था । मनसबदारी प्रथा मंगोल और मध्य एशियाई से उत्पत्ति हुई है । उसने अपनी सेना को दशमलव के आधार पर संगठित किया था । बाबर ने भी इस इस प्रथा को अपनाया था, जिसे वजाहजार के नाम से जाना जाता था । इसे अकबर के द्वारा औपचारिक रूप से पेश किया गया था । मनसबदारी अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है पदवी या स्थान निश्चित करना । इसके तहत कर्मचारियों का पद, वेतन और दरबार में स्थान निश्चित किया जाता था। प्रत्येक मनसबदार को अपने मनसब के अनुसार सैनिक तथा घुड़सवार रखने होते थे । मनसब केवल सैनिक अधिकारियों को नही, नागरिक अधिकारियों को भी दिए जात थे। जिसके निम्नलिखित विशेषता थे -

मनसबदारों की योग्यता

साधारण मनसब के लिए मनसबदारों की योग्यता और राज्य - भक्ति का विचार होना चाहिए । उच्च मनसब के लिए देखा जाता था कि वह उच्च खानदान तथा राज - परिवार का व्यक्ति हो ।

मनसबदारों की नियुक्ति, पदोन्नति एवं पद - मुक्ति

मनसबदारों की नियुक्ति सम्राट स्वयं करता था । मनसब पाने वाले व्यक्तियों को मीर बख्शी सम्राट के सामने प्रस्तुत करता था। सम्राट उसकी योग्यता और मीर बक्शी के सलाह से मनसबदार नियुक्त कर देते थे । इसके पदोन्नति भी सम्राट की इच्छा पर होती थी । वह जब चाहे किसी भी मनसबदार को उसके पद से हटा सकता था ।  मनसबदार अपने पद निम्न स्तर पर प्राप्त करने के बाद ही अपनी कार्यक्षमता और योग्यता के अनुसार पदोन्नति किया जाता था। पदोन्नति के समय मनसबदार के जात मनसब में वृद्धि की जाती थी जिससे इसका वेतन भी बढ़ जाता था । इसके अयोग्यता के कारण जात मनसब में कमी की जाती थी, लेकिन सामान्यत ऐसा नहीं किया जाता था । इसके अलावा यह पद वशांनुगत नही था। मनसबदार की मृत्यु या बर्खास्तगी के बाद उसकी अचल संपत्ति सम्राट के द्वारा जब्त कर के सरकारी खजाने मे जमा कर दिया जाता था, जिसे जब्ती नियम नाम से जाना जाता था ।

मनसबदारों की श्रेणियाँ

अबुल फजल के तहत मनसबदारों की कुल 66 श्रेणियों का वर्णन किया गया है, लेकिन मुगल प्रशासन में 33 श्रेणियों का ही उपयोग किया गया था । अकबर के शासनकाल में सबसे न्यूनतम मनसब का अंक 10 सैनिक और सबसे बड़ा 10,000 का होता था । अकबर के शासनकाल में किसी विशेष व्यक्ति को 7000 तक मनसब दिए गए थे। इस संख्या में शाहजहां के शासनकाल में वृद्धि देखने को मिलता है । इसने अपने पुत्र दाराशिकोह को 40,000 तक मनसब प्रदान किया गया था ।

'जात' और 'सवार' मनसब क्या है

प्रत्येक अधिकारियों को नियुक्ति के समय मनसब प्रदान किया जाता था । इसे अकबर ने अपने शासनकाल के अंतिम वर्षों में मनसब के लिए जात एवं सवार जारी किया था जो दो जोड़े के रूप मे होता था ( जैसे -5000 जात /5000 सवार अथवा 2000 जात / 1500 सवार ) । इस जोड़ें का पहला अंक जात मनसब कहलाता था। जात मनसब द्वारा किसी व्यक्ति का अधिकारियों के बीच स्थान या उनकी सर्वश्रेष्ठ का निर्धारण होता था और सवार मनसब के द्वारा किसी व्यक्ति का सैनिक दायित्व का निर्धारण होता था । 

इसे पद को तीन श्रेणियों में बाटाँ गया था -
  • प्रथम श्रेणी के मनसबदार - इसमें जात मनसब तथा सवार मनसब बराबर होता था ( जैसे - 5000 जात / 5000 सवार ) ।
  • द्वितीय श्रेणी के मनसबदार - इसमें सवार मनसब जात मनसब का आधा होता था ( जैसे - 5000 जात / 2500 सवार ) ।
  • तृतीय श्रेणी के मनसबदार -इसमें सवार मनसब जात मनसब का आधा से भी कम होता था । ( जैसे - 5000 जात / 2000 सवार ) ।
सवार मनसब की संख्या किसी भी हालत में जात मनसब सबसे अधिक नहीं हो सकती थी । इसमें केवल विशेष परिस्थितियों में ही जात मनसब से अधिक सवार मनसब में वृद्धि की जाती थी, जसे मशरूत मनसब कहा जाता था और इसके जरूरत समाप्त हो जाने पर यह भी वृद्धि समाप्त हो जाती थी ।

दहबिस्ती नियम क्या है

अकबर ने सेना को अधिक कुशलता बनने के लिए दहबिस्ती नियम को लागू किया था । इसके तहत प्रत्येक दस सैनिक पर बीस घोड़े रखना होता था। इसके साथ-साथ समय पर सैनिकों का निरीक्षण किया जाता था । उसने घोड़े को 'दाग' तथा 'तसहीहा' ( हुलिया ) प्रथा भी शुरू कर दिया। जिसके तहत घोड़ा पर शाही मोहर लगाया जाता था तथा सैनिको की हुलिया रिकार्ड किया जाता था। अकबर ने पुनः अलाउद्दीन खिलजी प्रथा को जीवित कर दिया ।

दो अस्पा एवं सिंह अस्प प्रथा क्या है

अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर में मनसबदारी प्रथा में कुछ सुधार लाए । उसने अपने समय में दो अस्पा एवं सिंह अस्प की व्यवस्था की । जिससे यह लाभ हुआ, कि जात मनसब में वृद्धि किए बिना ही सैनिको मे वृद्धि हो गया ।
                                        शाहजहाँ के शासन समय भी कुछ परिवर्तन देखनो को मिलता है । शाहजहाँ ने सुवारों के निर्धारण संख्या में कमी की अनुमति दी गई । इसे 'माहानावेतन ' कहा जाता है। इसके अंतर्गत किसी मनसबदार को यादि उसके पूरे एक साल की अवधि का वेतन नहीं मिला था, या उससे कम अर्थात कुछ महीने का ही वेतन मिला था, तो वह अपने अनुपात में सैनिक की संख्या कम कर ले । इसका कारण जागीरदारी प्रथा के संकट था।

मनसबदरो का वेतन

मनसबदारों को नकद वेतन नकद वेतन दिया जाता था । उनके वेतन के साथ उनके सैनिक खर्च भी दिये जाते थे। अमीर मनसबदारो को जागीर दिया जाता था। ऐसी जागीर 'तनख्वाह' जागीर कहलाती थी। यह जागीर वंशानुगत नही होता था । 'वतन' जागीर राजपूत सरदारो को दिया जाता था और यह वंशानुगत होता था । वेतन के रूप में जागीर प्रदान करने से जगीदारी संकट उत्पन्न हो गया था । औरंगजेब के समय यह संकट और भी गम्भीर हो गया था।

मुगल मनसबदारो के मध्य निश्चित किया गया कुछ श्रेणियाँ

10 से 500 तक मनसब प्राप्त करने वाले मनसबदार कहलाते थे ।
500 से 2500 तक मनसब प्राप्त करने वाले उमरा कहलाते थे ।
2500 से ऊपर तक मनसब प्राप्त करने वाले अमीर- ए- आजम कहलाते थे ।

मनसबदारी प्रथा के गुण एवं दोष

इसके निम्नलिखित गुण थे -
  • मनसबदार वेतन के लिए सम्राट पर निर्भर था । इसलिए विद्रोह नहीं होता था ।
  •  इससे साम्राज्य मे एकता और राजनैतिक एकीकरण देखने को मिलता है । जिससे सभी बादशाह के प्रति उत्तरदायी थे और एकता होकर बादशाह के प्रति समर्पित था ।
  •  मनसब योग्यता और क्षमता के अनुसार दिए जाते थे । पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र को या पद नहीं मिलता था ।
  • अलग-अलग जातियों के मनसबदार होने से क्षेत्रीय भावनाओं में कमी आई । इसके अतिरिक्त एक दूसरे के विरुद्ध संतुलन बनाए रखते थे । जिससे राजनीतिक स्थिरता को बढ़वा मिला ।
इसके निम्नलिखित दोष थे -
  •  मनसबदार के सैनिक सम्राट की अपेक्षा अपने सरदार के प्रति काफी वफादार थे ।
  • एक मनसब जीवन भर एक ही सैनिक दल का सेनापति रह जाता था।
  • इसमें विभिन्न जाति तथा क्षेत्रीय का समावेश था जिसे एक सूत्र में बंद रखना कठिन था ।
  • यह काम केवल शक्तिशाली तथा योग्यता वाले शासक द्वारा ही संभव था । कमजोर सास को द्वारा एकता बनाए रखने में कठिन हो गया था । इन दोषो के चलते मगुल साम्राज्य का पतन एक कारण बन गया 

निष्कर्ष :-

मनसबदारी प्रथम मुगल प्रशासन की एक महत्वपूर्ण व्यवस्था थी । इसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू थे । जब तक यह अच्छे ढंग से कार्य करता रहा साम्राज्य को एकता और सुदृढ़ता में कोई कमी देखने को नही मिला। किन्तु जब यह कमजोर हो गया तो साम्राज्य का पतन हो गया ।

Frequently Asked Questions

1. मनसबदारी प्रथा को किसके द्वारा शुरू किया गया था ?
Ans - यह प्रथा अकबर के द्वारा 1575 ईस्वी को शुरू किया था ।
2 . मनसबदारी प्रथा का अर्थ क्या है।
Ans - मनस्बदारी अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है पदवी या स्थान निश्चित करना । जिसके अनुसार कर्मचारियों को पद, वेतन और दरबार में स्थान निश्चित किया जाता था ।
3 . मनसबदारी प्रणाली में दो अस्पा एवं सिंह अस्प प्रथा आरंभ किसने किया था ।
Ans - मनसबदारी प्रणाली में इस प्रथा को जहाँगीर ने शुरू किया था । इससे सवार मनसब की संख्या का वृद्धि हो गया ।

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1 Comments
  • Anonymous
    Anonymous March 3, 2024 at 1:45 PM

    Very good 👍

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